Important Questions Related To Indian Constitution For All Examinations Part 27

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राज्यों को विशेष राज्य का_दर्जा किसे मिलता है विशेष राज्य का दर्जा

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Important Questions Related to Indian Constitution part 27

राज्यों को विशेष राज्य का_दर्जा  किसे मिलता है विशेष राज्य का दर्जा (Which gets the state’s special status? Special state status)

The Central Government gives special states status to those states whose areas are inaccessible. Also, a special area of the state will be attached to the international border. That area is very important in terms of the security of the country. Most hill states have got special status. At present, out of 28 states, 11 states have got special status. There are almost all states of pre-election

केंद्र सरकार उन राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा देती है जिनके इलाके दुर्गम होते हैं। साथ ही प्रदेश का एक खास क्षेत्र इंटरनैशनल सीमा से लगा हो। वह क्षेत्र देश की सुरक्षा के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण होता है। ज्यादातर पहाड़ी राज्यों को विशेष राज्य दर्जा मिला है। फिलहाल भारत में 28 राज्यों में से 11 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिला है। इसमें पूर्वोंत्तर के लगभग सभी राज्य हैं।

विशेष राज्य का दर्जा मिलने के फायदे (Benefits of getting special state status)

90 per cent of the money received from the Central Government is given as a help. In this 10 percent of the money is loaned as a loan. There are many other types of facilities availa

केंद्र सरकार की तरफ से मिलने वाले पैकेज में 90 फीसदी रकम बतौर मदद मिलती है। इसमें 10 फीसदी रकम ही बतौर कर्ज होती है। केंद्र सरकार की तरफ से अन्य कई तरह की भी कई सुविधाएं मिलती हैं।

अन्य राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा (Special state status to other states)

Some states need some special status in order to promote equal development, equality and inclusive growth due to their non-uniformity, uneven development, tribal areas, backwardness and aspirations of the people. However, these special arrangements have been established by gradual amendment in the constitution.

कुछ राज्यों को अपनी गैर एकरूपता, असमान विकास, आदिवासी क्षेत्रों, पिछड़ेपन और लोगों की आकांक्षाओं के कारण समान विकास, समानता और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के क्रम में कुछ विशेष दर्जे की जरूरत होती है। हालांकि संविधान में क्रमिक संशोधन द्वारा ये सभी विशेष व्यवस्थाएं स्थापित की गयी हैं।

अनुच्छेद 371: महाराष्ट्र और गुजरात के लिए प्रावधान (Article 371: Provisions for Maharashtra and Gujarat)

(A) Establishment of separate development board for Vidarbha, Marathwada and entire Maharashtra and Saurashtra and Maharashtra and Saurashtra, Kutch and Gujarat along with some provisions and present the report of works done by each board in the state assembly every year.

(क) कुछ प्रावधानों के साथ विदर्भ, मराठवाड़ा और पूरे महाराष्ट्र तथा सौराष्ट्र और महाराष्ट्र तथा सौराष्ट्र, कच्छ एवं गुजरात के लिए अलग विकास बोर्ड की स्थापना करना तथा प्रत्येक बोर्ड द्वारा किये गये कार्यों की रिपोर्ट को प्रत्येक वर्ष राज्य विधानसभा में प्रस्तुत करना।

(B) Proportional allocation of accumulated funds for the development expenditure of the areas marked by the State in accordance with the requirements of a state,

(ख) एक राज्य की आवश्यकताओं के अनुरूप राज्य द्वारा चिह्नित किये गये क्षेत्रों के विकास व्यय के लिए अवमुक्त धनराशि का न्यायसंगत आवंटन,

(C) To implement a uniform system for providing adequate facilities for technical education and vocational training and providing adequate opportunities for employment in services under the control of the State Government. In the context of the above mentioned areas, the state is responsible for the full requirements.

(ग) तकनीकी शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध कराने हेतु एक समान व्यवस्था लागू करना और राज्य सरकार के नियंत्रण के अधीन सेवाओं में रोजगार के लिए पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराना। उपरोक्त चिह्नित क्षेत्रों के संदर्भ में राज्य पूरी आवश्यकताओं के लिए जिम्मेदार है।

अनुच्छेद 371-ए: नागालैंड के लिए प्रावधान (Article 371-A: Provision for Nagaland)

(1). (A) No act of Parliament will apply to the following:

(A) In Nagaland, religious or social practices of Nagas, Naga does not decide on customary laws and procedures, administration of civil and criminal justice, ownership and land transfer and its resources unless the proposals brought by the Legislative Assembly of Nagaland .

(B) The governor of Nagaland will have special responsibility in respect of law and order in the state.

(1). (क) निम्न के संर्दभ में संसद का कोई अधिनियम लागू नहीं होगा-

(क) नागालैंड में नागाओं की धार्मिक या सामाजिक प्रथाओं, नागा प्रथागत कानून और प्रक्रियाओं, सिविल और आपराधिक न्याय के प्रशासन, स्वामित्व और भूमि हस्तातंरण तथा इसके स्त्रोतों पर जब तक नागालैंड की विधानसभा द्वारा लाये गये प्रस्तावों पर कोई फैसला नहीं करती, तब तक।

(ख) नागालैंड के राज्यपाल के पास राज्य में कानून एवं व्यवस्था के संबंध में विशेष जिम्मेदारी होगी

(C) Can recommend the Governor in relation to any demand for grant. The governor of Nagaland will ensure that the money provided by the Government of India for any specific service or purpose, which may be related to the grant, may not be used for any other demand, but related to it Must be for sponsorship or service only.

(ग) अनुदान के लिए किसी भी मांग के संबंध में राज्यपाल की सिफारिश कर सकता है। नागालैंड के राज्यपाल यह सुनिश्चत करेगें कि किसी भी विशिष्ट सेवा या प्रयोजन के लिए भारत की संचित निधि से भारत सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली धनराशि जो अनुदान से संबंधित भी हो सकती है, का प्रयोग किसी अन्य मांग के लिए नहीं होना चाहिए बल्कि उससे संबधित प्रायोजन या सेवा के लिए ही होना चाहिए।

(घ) नागालैंड के राज्यपाल द्वारा इस संबंध में लोक अधिसूचना के माध्यम से पैंतीस सदस्यों से मिलकर तुएनसांग जिले के लिए एक क्षेत्रीय परिषद की स्थापना की जाएगी जिसके लिए राज्यपाल संविधान के अनुसार अपने विवेकानुसार नियम बना सकतें हैं।

अनुच्छेद 371-बी: असम के लिए प्रावधान (Article 371-B: Provision for Assam)

In relation to Assam State, the President can constitute a committee for the constitution and functions of the State Legislative Assembly, which consists of elected MLAs from Scheduled Areas whose details are given in the part of the table enclosed in para 20 of the Sixth Schedule. Thus the details of other members of the Assembly may also be in the order. The assembly can do the proper functioning for amendments in rule laws in the state.

असम राज्य के संबंध में राष्ट्रपति एक आदेश द्वारा राज्य विधानसभा के संविधान और कार्यों के लिए एक समिति का गठन कर सकते हैं जिसमें अनुसूचित क्षेत्रों से निर्वाचित विधायक शामिल होते हैं जिसका विवरण छठी अनुसूची के पैरा 20 में संलग्न तालिका के भाग में दिया गया है। इस प्रकार विधानसभा के अन्य सदस्यों का विवरण भी आदेश में हो सकता है। राज्य में नियम कानूनों में संशोधनों के लिए विधानसभा समुचित कार्य कर सकती है।

अनुच्छेद 371-सी: मणिपुर के लिए प्रावधान (Article 371-C: Provision for Manipur)

(1). In relation to the State of Manipur, the President can constitute a committee for the constitution and functions of the State Assembly in which an elected MLA from the hill areas is included. Regarding the rules of the functions of the government and rules related to the rule of the state legislature, the responsibility of overseeing the functions of such a committee in particular is with the governor.

(1).मणिपुर राज्य के संबंध में राष्ट्रपति एक आदेश द्वारा राज्य विधानसभा के संविधान और कार्यों के लिए एक समिति का गठन कर सकते हैं जिसमें पर्वतीय क्षेत्रों से निर्वाचित विधायक शामिल होते हैं। सरकार के कार्यों के नियमों में संशोधनों और राज्य विधानसभा की नियम प्रक्रिया से संबंधित नियमों में इस तरह की समिति के कार्यों की देखरेख की जिम्मेदारी विशेष रूप से राज्यपाल के पास होती है।

(2).राज्यपाल, राष्ट्रपति को वार्षिक रूप में या जब भी आवश्यक हो, मणिपुर राज्य में पहाड़ी क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में राष्ट्रपति को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगें। और कार्यकारी शक्ति के रूप में केंद्र चिह्नित क्षेत्रों के प्रशासन के लिए राज्य को दिशा निर्देश देंगे।

अनुच्छेद 371-डी: आंध्र प्रदेश के लिए प्रावधान (Article 371-D: Provision for Andhra Pradesh)

(1).  आंध्र प्रदेश राज्य के संबंध में राष्ट्रपति, सार्वजनिक रोजगार और शिक्षा, तथा विभिन्न प्रावधानों के मामले में राज्य के विभिन्न भागों से संबंधित लोगों के लिए समान अवसर और सुविधाएं प्रदान करने का आदेश जारी कर सकते हैं तथा राज्य के विभिन्न भागों के लिए अलग प्रावधानों का भी निर्माण कर सकते हैं

(2). एक विशेष रूप में भी आदेश हो सकता है, –

(क) सिविल सेवा या सिविल पदों में किसी भी वर्ग या वर्गों के लिए पदों का सृजन करना राज्य सरकार की आवश्यकता होती है, राज्य के विभिन्न भागों के लिए अलग- अलग स्थानीय कॉडर तय किये गये हैं और उसके अनुसार सिद्वांतों और व्यवस्था को निर्धारित किया जाता है।

(3). राष्ट्रपति, आदेश द्वारा आंध्र प्रदेश को अधिकार क्षेत्र, शक्तियों और अधिकारों का प्रयोग करने के लिए एक प्रशासनिक न्यायाधिकरण उपलब्ध करा सकते हैं।

अनुच्छेद 371 ई: आंध्र प्रदेश में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना  करना।

संसद कानून द्वारा आंध्र प्रदेश राज्य में एक विश्वविद्यालय की स्थापना कर सकती है।

अनुच्छेद 371-एफ: सिक्किम के लिए प्रावधान

(क) सिक्किम राज्य की विधान सभा कम से कम तीस सदस्यों से मिलकर बनेगी;

(ख) संविधान अधिनियम, 1975 (36 वां संशोधन) के प्रारंभ होने की तिथि से ही (इसके बाद इस अनुच्छेद को नियुक्ति दिन जाना जाएगा)

अनुच्छेद 371-जी: मिजोरम के लिए प्रावधान

(क) निम्न के संबंध में संसद का कोई अधिनियम लागू नहीं होगा-

(i) मिजो के धार्मिक या सामाजिक प्रथाओं,

(ii) मिजो के प्रथागत कानून और प्रक्रिया,

(iii) सिविल और आपराधिक न्याय के प्रशासन में निर्णय मिजो प्रथागत कानून के अनुसार होंगे।

(iv) भूमि के स्वामित्व और हस्तांतरण मिजोरम राज्य में तभी लागू होगा जब तक मिजोरम की विधानसभा इस पर कोई फैसला नहीं ले लेती है:

(ख) मिजोरम की राज्य विधान सभा कम से कम चालीस सदस्यों से मिलकर बनेगी।

अनुच्छेद 371-एच: अरुणाचल प्रदेश के लिए प्रावधान

(क) अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल के पास अरुणाचल प्रदेश में कानून एवं व्यवस्था के संबंध में विशेष जिम्मेदारी होगी और मंत्रियों की परिषद से परामर्श करने के बाद वह इस संबंध में अपने कार्यों का निर्वहन करेगा।

(ख) अरुणाचल प्रदेश के राज्य की विधान सभा कम से कम तीस सदस्यों से मिलकर बनेगी।

अनुच्छेद 371-आई: गोवा के लिए प्रावधान

गोवा राज्य की विधान सभा कम से कम तीस सदस्यों से मिलकर बनेगी

अनुच्छेद 371-जे: कर्नाटक के लिए प्रावधान

(1). राष्ट्रपति, कर्नाटक राज्य के संबंध अपने आदेश द्वारा राज्यपाल को निम्न के संबंध में विशेष जिम्मेदारी प्रदान सकते हैं-

(क) हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के लिए एक अलग विकास बोर्ड की स्थापना

(ख) चिह्नित क्षेत्रों के विकास लिए आबंटित धन का न्यायसंगत वितरण,

(ग) सार्वजनिक रोजगार, शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण से संबंधित मामलों में चिह्नित क्षेत्रों के लिए के समान अवसर और सुविधाएं प्रदान करना।

(2). खंड (1) के उपखंड (ग) के तहत निम्नलिखित बिंदुओं के एक आदेश कर सकता है:

(क) जो छात्र जन्म या अधिवास से ही उस क्षेत्र के हैं उन छात्रों के लिए हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के शैक्षिक और व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों में सीटों के अनुपात में आरक्षण;  और

(ख) हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र में राज्य सरकार के नियंत्रण या किसी निकाय या संगठन जो राज्य सरकार के अधीन में है और वहां पदों और वर्गों की पहचान करना औऱ ऐसे पदों पर जन्म या अधिवास के आधार पर, जो वहां से संबंध रखते हैं उनकी एक अनुपात में आरक्षण और नियुक्ति करना। जिसे सीधी भर्ती या पदोन्नति द्वारा एक प्रक्रिया के तहत निर्दिष्ट किया सकता है।

भाग:(1).(17)

जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा

भारत के संविधान का अनुच्छेद 370 जम्मू और कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देता है। पाकिस्तान के हमला करने के डर के बीच जम्मू और कश्मीर का उसके स्वयं पर अधिकार बनाए रखते हुए, भारत में जल्दबाजी में शामिल हो गया था। हालांकि, कई पैमाने हैं जिनके तहत जम्मू और कश्मीर को विशेष लाभ दिए गए हैं।

जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा

भारत के संविधान के भाग XXI में अनुच्छेद 370 जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करता है। विशेष दर्जा राज्य को पर्याप्त स्वायत्ता देता है। विदेश, रक्षा, संचार और अनुषंगी मामलों को छोड़कर ज्यादातर फैसले केंद्र सरकार राज्य सरकार की सहमति के साथ करती है।

प्रवेशाधिकार की मुख्य विशेषताएं

हालांकि, बहुत ही अस्थायी व्यवस्था की कल्पना की जाने के बावजूद, इसने जम्मू और कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिलाया, इसके बारे में नीचे विस्तार से बताया जा रहा है–

समझौते के तहत, राज्य ने रक्षा, संचार और विदेशी मामलों में आत्मसमर्पण कर दिया।

अलग संविधान सभा के माध्यम से राज्य को अपना अलग संविधान मसौदा तैयार करने की स्वायत्तता प्रदान की गई।

उपरोक्त बातों को अस्थायी रूप से शामिल करने के लिए भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370  बनाया गया था।

मूल संविधान (1950) में जम्मू और कश्मीर राज्य को भाग ख राज्यों की श्रेणी में रखा गया था।

केंद्र जम्मू और कश्मीर राज्य की सहमति से संघ और समवर्ती सूची पर कानून बनाएगा।

अनुच्छेद 1 भी लागू होगा।

नीचे जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा दिए जाने वाले विभिन्न मानकों का वर्णन किया गया है–

राज्य विधायिका की सहमति के बिना इसका नाम, क्षेत्र या सीमा नहीं बदला जा सकता।

भारतीय संविधान का भाग VI जो राज्य सरकार के लिए है, लागू नहीं होता।

आतंकवादी गतिविधियों, भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर प्रश्न उठाने और उसमें बाधा डालने, राष्ट्रीय झंडे, राष्ट्रीय गान और भारत के संविधान के अपमान जैसी गतिविधियों की रोकथाम को छोड़कर बाकी मामलों में शक्तियां राज्य के पास होंगी।

राज्य में अभी भी संपत्ति का मौलिक अधिकार दिया जाता है।

सरकारी रोजगार, अचल संपत्ति का अधिग्रहण, निपटान और सरकारी छात्रवृत्तियों के संदर्भ में राज्य के स्थायी निवासों को विशेष अधिकार प्राप्त हैं।

राज्य की नीतियों और मौलिक कर्तव्यों के निर्देशक सिद्धांत लागू नहीं हैं।

आंतरिक अशांति के आधार पर राष्ट्रीय आपातकाल राज्य सरकार की सहमति के बिना प्रभावी नहीं होगा।

वित्तीय आपातकाल थोपा नहीं जा सकता।

मौलिक अधिकारों को छोड़कर किसी भी अन्य मामलों में जम्मू और कश्मीर का उच्च न्यायालय रिट जारी नहीं कर सकता।

पाकिस्तान जाने वाले लोगों को नागरिकता के अधिकार से वंचित रखना लागू नहीं है।

भारतीय संविधान की पांचवी अनुसूची और छठी अनुसूची लागू नहीं है।

राजभाषा प्रावधान सिर्फ संघ के राजभाषा से संबंधित होने पर ही लागू होंगे।

भारत के संविधान में किया गया संशोधन बिना राष्ट्रपति के आदेश के स्वतः ही राज्य में लागू नहीं होगा।

राज्य में राष्ट्रपति शासन सिर्फ राज्य के संविधान के संवैधानिक तंत्र की विफलता पर ही लगाया जाएगा न कि भारतीय संविधान के संवैधानिक तंत्र की विफलता पर।

अंतरराष्ट्रीय समझौतों या संधियों के मामले में राज्य विधायिका की सहमति अनिवार्य है।

इसलिए, भारत की गरिमा को बनाए रखने के लिए जम्मू और कश्मीर और भारत के बीच के संबंध में जल्द– से– जल्द सामंजस्य स्थापित करना होगा। समकालीन विश्व में विकास और समृद्धि पाने के लिए जलते कश्मीर का खामियाजा भारत नहीं उठा सकता। भारत की अखंडता और सुरक्षा से समझौता किए बगैर प्राथमिकता के आधार पर सभी हितधारकों की आकांक्षाओं को पूरा करना ही एकमात्र विकल्प है। भारत का विकास तभी होगा जब इसके सभी राज्य और भूभाग विकसित होंगे।

भाग:(1).(18)

संविधान_संशोधन

संशोधन एक राष्ट्र या राज्य के लिखित संविधान के पाठ में औपचारिक परिवर्तन को दर्शाता है। संविधान के संशोधन अत्यधिक जीवन की वास्तविकता को प्रतिबिंबित करने के लिए संविधान को संशोधित करने और मार्गदर्शन करने के लिए आवश्यक है। संविधान में संशोधन कई प्रकार से किया जाता है नामतः साधारण बहुमत, विशेष बहुमत तथा बहाली कम से कम आधे राज्यों द्वारा| अनुच्छेद 368 के तहत संवैधानिक संशोधन, भारतीय संविधान की एक मूल संशोधन प्रक्रिया है।

संविधान का संशोधन (Amendment of the constitution)

संविधान का संशोधन कुछ प्रावधानों को बदलने या दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कुछ बाहरी सुविधाओं को अद्यतन करने का तात्पर्य है। संवैधानिक संशोधन का प्रावधान संविधान की वास्तविकता और दैनिक आवश्यकताओं का प्रतिबिंबित प्रदर्शित करने के लिए आवश्यक है।

संविधान संशोधन की आवश्यकता

संविधान में संशोधन के लिए आवश्यकता पर निम्न प्रकार से बल दिया जा सकता है:

(1). यदि संशोधन का कोई प्रावधान नहीं दिया गया हो, लोग और नेता कुछ अतिरिक्त संवैधानिक अर्थों का पालन करते हैं जैसे क्रान्ति, हिंसा तथा इसी तरह संविधान में घुल जाते हैं।

(2). संविधान में संशोधन के प्रावधान को इस दृष्टिकोण के साथ बनाया गया कि भविष्य में संविधान को लागू करने में कठिनाइयाँ न आयें।

(3). यह इसलिए भी आवश्यक है कि संविधान लागू होंने के समय में हुई कमियों को ठीक करना।

(4).आदर्श, प्राथमिकताएं और लोगों की दृष्टि पीढ़ी दर पीढ़ी बदलती हैं। इन को शामिल करने के लिए, संशोधन वांछनीय है।

संविधान में संशोधन के लिए प्रक्रिया (Process for amendment to the constitution)

संविधान में संशोधन कई प्रकार से किया जाता है नामतः साधारण बहुमत, विशेष बहुमत तथा  कम से कम आधे राज्यों द्वारा समर्थन| अनुच्छेद 368 के तहत संवैधानिक संशोधन, भारतीय संविधान की एक मूल संशोधन प्रक्रिया है, जिसकी प्रक्रिया निम्न रूप से वर्णित की जा सकती है-

(1). यह संसद के किसी भी सदन में रखा जा सकता है

(2).इसे राज्य विधायिका में पेश नहीं किया जा सकता

(3). बिल एक मंत्री या एक निजी सदस्य के द्वारा पेश किया जा सकता है

(4). संसद के किसी भी सदन में विधेयक पेश करने के लिए राष्ट्रपति की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है

(5).बिल अलग-अलग सदनों द्वारा पारित होना चाहिए

(6). यह विशेष बहुमत (वर्तमान सदस्यों और मतदान के 2/3 और कुल संख्या का कम से कम 50%) द्वारा पारित होना चाहिए

(7).राज्य के कम से कम आधे से अनुसमर्थन भारतीय संविधान के किसी भी संघीय सुविधा में संशोधन के मामले में जरूरी है

(8).सभी उपरोक्त कदम के बाद, बिल राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है जहां उसके पास  हस्ताक्षर करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। हालांकि, राष्ट्रपति के लिए बिल पर कारवाई करने के लिए समय अवधि निश्चित नहीं की गई है।

(9).जब एक बार राष्ट्रपति अपनी सहमति दे देता है, तो बिल एक अधिनियम बन जाता है

 

 संशोधन के प्रकार (Types of modification)

Under Article 368 of the Constitution, there are two types of amendments in the Constitution of India.

(1). Only the special majority of Parliament

(2). With the support of the half-states of the states with an ordinary majority, Special majority

संविधान के अनुच्छेद 368 के दायरे में, भारत के संविधान में संशोधन के दो प्रकार के होते हैं।

(1).केवल संसद का विशेष बहुमत

(2).एक साधारण बहुमत से राज्यों के आधे के अनुसमर्थन के साथ-साथ संसद का. विशेष बहुमत।

 

संविधान के संशोधन की आलोचनाएं निम्न हैं: (The criticisms of the amendment to the Constitution are as follows:)

(1).. भारत के पास कोई भी स्थायी संवैधानिक संशोधन समिति नहीं है जैसे कई अन्य देशों के पास है तथा सभी प्रयास अपेक्षाकृत निष्कपट और अनुभवहीन संसद द्वारा किया जाते हैं।

(2).राज्य विधायिका के पास विधान परिषद के गठन या उन्मूलन के आरम्भ करने की शक्ति होने के अलावा, संशोधन प्रक्रिया की शुरुआत के लिए कोई भी अन्य गुंजाइश नहीं है। यह भारतीय संविधान को एकाधिकार के केंद्र के साथ साथ राज्यों के लिए द्र्ढ़ बनाता है।

(3).संसद के दोनों सदनों का अस्तित्व संवैधानिक संशोधन अधिनियम को पारित करने के लिए असहमति के कारण कठिनाई उत्पन्न करता है।

(4).. सामान्य विधायी कार्य और संवैधानिक संशोधन कार्य के बीच शायद ही कोई फर्क होगा।

(5).राज्य विधायिका की पुष्टि करने के लिए कोई समय सीमा नहीं है

(7).अपनी सहमति देने के लिए राष्ट्रपति के लिए कोई समय सीमा नहीं है

भारतीय संविधान के संवैधानिक संशोधन प्रक्रिया का वर्णन करते हुए  के.सी. व्हेयरे ने  ठीक ही कहा है कि संविधान में संशोधन लचीलापन और कठोरता के बीच एक अच्छा संतुलन बनाता है। इसके अलावा, ग्रानविले ऑस्टिन, भारतीय संविधान की एक प्रसिद्ध विद्वान ने कहा, “संशोधन की प्रक्रिया ने संविधान को सबसे चतुराई से ग्रहण कर उसके पहलुओं को अपने आप ही साबित कर दिया है। यद्यपि यह जटिल लगता है, यह महज विविध है। ”

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